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लेखनी प्रतियोगिता -03-Oct-2023


#दिनांक:-3/10/2023
#शीर्षक:-ठगी सी देखती रह गई।

बस,
एक दो लोगों तक पहुंचना था,
पहुंच गये पर इच्छा और की हुई,
दस बारह लोगों की भीड़,
छोटी टोली बन गई ,
इच्छा और की हुई ,
नयेपन की खोज में,
बीस से तीस लोग मिले,
पर इच्छा ,
और तीव्र हो गई,
जिस-जिस ने जाना,
जहाँ-तहाँ सभी ने बुलाया,
जाने लगी,
इच्छा की और जगह चलने की फरमाइश हुई ,
आँखों पर चश्मा चढ़कर मुंह चिढ़ाने लगा,
पर इच्छा की गति और तेज हुई,
छिछलेपन में गहराई दिखने लगी ,
पर इच्छा की इच्छाशक्ति कम ना हुई,
सर्वत्र वाह-वाह की गुंजार,
मन को आह्लादित करने लगा।
पर इच्छा और, और, और की हुई ,
इच्छा के घर में भटक गयी है खुशी!
एक तारीफ ना आये तो ,
अटक जाती हलक में हंसी,
इच्छा तारीफ के प्रेम में फंस गई!
पर,
इच्छा-दुल्हन प्रशंसक की हुई |
और मैं?
ठगी सी देखती रह गई!

रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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2 Comments

Alka jain

04-Oct-2023 02:36 PM

Nice 👍🏼

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Abhinav ji

04-Oct-2023 07:44 AM

Nice

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